केतु के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए – Ketu Ke Liye Kaun Sa Ratna Dharan Karna Chahiye

केतु के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए – Ketu Ke Liye Kaun Sa Ratna Dharan Karna Chahiye

 

केतु के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए

 – Ketu Ke Liye Kaun Sa Ratna Dharan

 Karna Chahiye

केतु के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए – (ketu ke liye kaun sa ratna dharan kare) जिससे उसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सके और उसकी स्थिति को अपने लग्न कुंडली में और अधिक मजबूत बनाया जा सके जिससे उससे संबंधित विभिन्न कार्य जल्द से जल्द संपन्न हो एवं उसका लाभ हमें व्यापक रूप से प्राप्त हो सके।

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प्राचीन युग हो या आधुनिक युग हो हर युग में ज्योतिष विद्या की महत्ता का वर्णन हमें विभिन्न प्रकार के ग्रंथों से प्राप्त होता हैl इंसान के जीवन में आ रही विभिन्न प्रकार के समस्याओं से संबंधित उपचार हम ज्योतिष विद्या के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं lयह एक इतनी कुशल विद्या है, जिसका प्रमाण पौराणिक काल से ही विस्तृत रूप में चर्चित हैl विभिन्न प्रकार के रत्न संसाधन जो अनगिनत वर्षों से सृष्टि पर उपलब्ध है lउन सभी का उपयोग ज्योतिष विद्या के माध्यम से करके किसी भी जातक के जीवन में बदलाव लाया जा सकता है, तभी तो यह विद्या आज तक बहुत से लोगों के द्वारा उपयोग में लाया जाता है।

पाश्चात्य ज्योतिष विज्ञान हो या भारतीय ज्योतिष विज्ञान इनसे संबंधित विद्वान की यही परिकल्पना रहती है, कि किसी भी कष्ट में कोई जातक है, तो उसे इस विद्या के माध्यम से उसकी परेशानियों से उसकी कष्टों से उसे निजात दिलाया जाए, ताकि वह भी विभिन्न प्रकार के भौतिक एवं सांसारिक सुखों का लाभ उठा सकेंl वह भी सफलता का स्वाद चख सके lविभिन्न प्रकार के नक्षत्र, ग्रह, उपग्रह का हमारे जीवन पर बहुत असर होता है, तथा इनसे संबंधित विभिन्न प्रकार के रत्न उपरत्न समय-समय पर लोगों के द्वारा धारण किया जाता है।

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केतु जिसे नेत्र विकार, तपस्या, शत्रु जनित पीरा, टोना टोटका संबंधित व्यवधान, नजर दोष तंत्र मंत्र संबंधित व्याधि ,उपवास, विश्वास, एकाग्रता, मंत्र ,साधना, मोक्ष तथा तीर्थ यात्रा का कारक माना जाता हैl इसके साथ साथ केतु का हमारे पिछले जन्मों के कर्मकांड, विचारों एवं विविध प्रकार की उपयोगिताओ से बहुत गहरा संबंध रहता है। केतु हमें उन सभी चीजों के प्रति उदासीनता एवं वे सभी चीजें जो हमें पूर्व के जन्म में आसानी से प्राप्त हो गई थी lइस जन्म में उन सभी चीजों के प्रति उदासीनता का भाव उत्पन्न करता है, तथा उन सभी चीजों को प्राप्त करने में अत्यंत कष्ट एवं अत्यंत पीड़ा जातक को देता है, जिससे अंततः जातक स्वयं ही उन सब चीजों को प्राप्त करने के लिए कर्मों से विमुख हो जाए एवं उसके जीवन में उन सभी चीजों के लिए नीरसता का भाव उत्पन्न हो और वह कुछ नए-नए प्रावधानों में खुद को लिप्त करें। नई -नई चीजों में अपने कौशलों का उपयोग कर उसमे सफलता प्राप्त करें एवं नवीन अनुभूति कर सके।

केतु ग्रह का स्वामी या देवता भगवान श्री गणेश श्री विघ्नहर्ता को माना जाता है, तथा यह शनि ग्रह का अनुचर होता हैl विभिन्न प्रकार के नक्षत्रों में अश्विनी ,मघा एवं मूल नक्षत्र का संबंध केतु ग्रह से होता हैl केतु की जब दशा या महादशा चलती है, तब जातक को विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता हैl उसके द्वारा दिए गए विभिन्न प्रकार के निर्णयों में उसे कभी भी सफलता प्राप्त नहीं होती हैl इसके साथ-साथ उसके द्वारा कोई भी कार्य जब अपने पूर्ण होने की अवस्था में होता है, तब उसमें कुछ ना कुछ विघ्न उत्पन्न हो जाता है, जिसकी वजह से वह कभी भी संपन्न नहीं हो पाता है। केतु ग्रह हमारे जीवन में आकस्मिक घटने वाली दुर्घटनाओं जैसे – गंभीर शारीरिक या मानसिक रोग ,चोट, वारदात आदि के लिए भी बहुत बड़ा कारक होता है।

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यह कभी भी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है, जिसमें जातक अपना सुध बुध खो बैठता है lउसे कुछ समझ नहीं आता है, कि उसका जीवन किस ओर जा रहा है lउसे पूरी तरह से दिमागी स्तर पर पंगु बना देता है, जिसे उसकी सोचने समझने की शक्ति खत्म होने लगती है lसोचने समझने की शक्ति में क्षय होने लगता है lउसकी जीवन की गाड़ी ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है, जहां से जातक किस ओर जाए उसे समझ नहीं आता हैl अचानक से आने वाली बाधाओं से उसका जीवन बिल्कुल क्षत-विक्षत हो जाता है, और उसके साथ ऐसी परिस्थिति क्यों उत्पन्न हो रही हैl यह बात उसके समझ से बिल्कुल पड़े हो जाती है।

केतु हमारे संतान पक्ष का कारक होता है lअतः यदि किसी को यह अच्छा प्रभाव दिखा रहा है, तो उसका संबंध उसके संतान पक्ष से बहुत ही उत्तम होगा lउसकी संतान उसे हर अवस्था में सहयोग करेगी तथा आदर सम्मान की दृष्टि से देखेगी।

केतु अग्नि तत्व को संबोधित करता है, जिसकी वजह से यदि जातक को जब अच्छे परिणाम देने पर आता है, तब जातक को सबसे पहले आलस्य एवं कार्यों को कल के ऊपर डालने की आदत से निजात दिलाता है, तथा यह किसी भी कार्य को करने के लिए जुनून पैदा करता हैl आध्यात्मिक आयामों में सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे बड़ा कारक ग्रह केतु ग्रह को माना जाता हैl केतु ग्रह के अनुकूल प्रभाव से जातक की छाया इतनी मजबूत होती है, कि वह विभिन्न प्रकार के टोने टोटके, तंत्र मंत्र या नजर दोष संबंधित चीजों को पूरी तरह से नष्ट करने की क्षमता रखती हैl यह जातक को कार्यस्थल संबंधित चीजें हो या घर परिवारिक संबंधित चीजें हर ओर एक संतुलन स्थापित करने में बहुत मदद करता हैl यह एक ऐसा ग्रह होता है, जो जातक को चुनौतीपूर्ण स्थितियों में भी विभिन्न प्रकार के भौतिक सुख एवं सांसारिक सुखों का आनंद प्राप्त करने में मदद करता है।

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ऐसा माना जाता है, कि इसके अनुकूल प्रभाव प्राप्त करने के लिए भगवान गणेश की आराधना करनी चाहिए एवं ऐसे कुत्ते जिनमें दो रंगों का समावेशन हो उन्हें रोटी अवश्य खिलाना चाहिए या फिर कोई भी भोजन अवश्य देना चाहिए lइसके लाभ को प्राप्त करने के लिए बहुत से लोगों के द्वारा कान भी छीदवए जाते हैंl इसके साथ-साथ इससे संबंधित रत्न लहसुनिया रत्न (ketu ke liye kaun sa ratna dharan karna chahie) को धारण करना चाहिए lयह एक ऐसा रत्न है, जो केतु ग्रह को निरूपित करता है, तथा केतु ग्रह से संबंधित गुप्त शक्तियों का वास इसके अंदर समाहित होता है, जिसकी वजह से जिस भी जातक के द्वारा लहसुनिया रत्न धारण किया जाता हैl उसके जीवन में विविध प्रकार से केतु ग्रह अनुकूल लाभ प्रदान करता है।

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