शालीग्राम की पहचान, shaligram ki
pehchan
शालिग्राम की पहचान कैसे करें?? (shaligram ki pahchan kya hai) भगवान की प्रत्यक्ष स्वरूप को पाकर भी मनुष्य कभी कभी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाता है, क्योंकि मनुष्य सोचता है, कि वह जितनी भी चीज है। अपनी आंखों के दायरे से देखता है, बस उतनी ही सच्चाई है। जितना ज्ञान उसे प्राप्त हुआ है।
बस इतना ही ज्ञान इस सृष्टि में बसा हुआ है, जबकि मनुष्य कितना भी कुछ भी अर्जित कर ले, किंतु सृष्टि में व्याप्त गूढ़ ज्ञान को प्राप्त करना उसके बस की बात नहीं है। वह तो केवल एक तुच्छ प्राणी मात्र है।
जिसे भगवान की सबसे अधिक कृपा प्राप्त हुई है एवं वह इस योग्य बना है, कि उनकी ध्यान अर्चना योग पूजा आदि कर पाए।ऐसा ही स्वरूप ठाकुर जी का शालिग्राम (shaligram ki pahchan kaise karen) को माना जाता है, जो कि एक जैविक पत्थर होता है। इसमें जीवाश्म के भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। जो आमतौर पर गोलाकार रूप में पाया जाता है। यह मुख्यतः गंडक नदी में पाया जाता है ।
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जिस प्रकार भगवान शिव शंभू का प्रतिमांत्मक स्वरूप शिवलिंग को माना जाता है। उसी प्रकार श्री हरि विष्णु का प्रतिकात्मक रूप यह शालिग्राम( शालिग्राम) को माना जाता है। गंडक नदी जिसे नारायणी नदी के नाम से भी जाना जाता है। वहां से प्राप्त होने वाले पत्थरों को शालिग्राम( शालिग्राम)की उपाधि दी जाती है।
माना जाता है कि शालिग्राम( शालिग्राम) (shaligram ko kaise pahchane) शिला को केवल स्पर्श मात्र कर लेने से जन्म जन्मांतर के पापों दोष कट जाते हैं। ऐसे में इनकी पूजा-अर्चना करना कितनी सौभाग्य फल प्रदान करने वाली हो सकती है। इसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते हैं किंतु मनुष्य एक भौतिक उन्माद की धुन में अपने अस्तित्व के जड़ों को मिटाने में सृष्टि के प्रत्येक जीव जंतु चल -अचल, प्राणी ,पत्थर पहाड़, पेड़, नदिया ,रत्न उपरत्न आदि वस्तुएं।
मनुष्य सभी वस्तुओं के साथ कृत्रिम रूप से परिवर्तन को लल्लाहित है। वह अपनी भोग विलासिता में इतनी अधिक उग्र एवं दंभी हो चुका है, कि वह सृष्टि के प्रत्येक कन में बदलाव लाना चाहता है। जबकि वह भूल जाता है।
शालीग्राम की पहचान, shaligram ki pehchan
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कि कण -कण में व्याप्त सृष्टि के रचयिता उसकी यह अतृप्त स्वरूप से परिचित है, किंतु मूर्ख मानव सभी चीजों के प्रतिष्ठित स्वरूप को बिगाड़ने में लगा हुआ है। ऐसा ही कुछ शालिग्राम( शालिग्राम) के शीला या पत्थर के साथ भी हो रहा है।
कृत्रिम रूप से कई प्रकार के पत्थरों को शालिग्राम भगवान का नाम देकर बाजारों में बेचा जा रहा है। भक्त अपने इष्ट को उसी रूप में लेकर जा रहे हैं, किंतु भगवान की शीला शालिग्राम( शालिग्राम) को कृत्रिम रूप से बना कर भोले भाले भक्तों को बेच कर उन्हें छला जा रहा है।
ऐसे में उन्हें शालिग्राम की पहचान (shaligram dharan karne ke fayde) की सही मापदंड का अनुमान अवश्य रखना चाहिए, जिससे वैकुंठ स्वामी श्री हरि विष्णु के परम स्वरूप का दर्शन उस व्यक्ति विशेष को प्राप्त हो। जिसके द्वारा यह शालिग्राम पत्थर अपने गृह द्वार पर ले जाया जा रहा है, या उसके द्वारा उस शालिग्राम स्वरूप में निवास करने वाले पितांबर भगवान की पूजा अर्चना की जानी है।
जिससे उसके सभी दोषों का अंत हो तथा भक्ति का मार्ग चुनकर वह अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सके ।
आइए जानते हैं, कि शालिग्राम की पहचान( शालिग्राम) हम किन मापदंडों के आधार पर कर सकते हैं ? क्या क्या आधार बनाकर हम शालिग्राम पत्थर को पहचान सकते हैं? भगवान के दिव्य स्वरुप शालिग्राम की पहचान हम किन पैमानों के आधार पर कर सकते हैं ?आज हम इस बात की चर्चा इस लेख के माध्यम से करेंगे-
शालीग्राम की पहचान, shaligram ki pehchan
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शालिग्राम की पहचान??? ( Shaligram Ki Pehchan )
1)• शालिग्राम( शालिग्राम) (shaligram kaisa hota hai) कोई आम पत्थर नहीं है ।यह अपने आप में बहुत ही अलौकिक एवं अविश्वसनीय माना जाता हैै जब भी किसी व्यक्ति के द्वारा शालिग्राम यदि खरीदा जा रहा है, तो उसे सबसे पहले उस पत्थर को लेकर किसी छोटे से कंकड़ से शालिग्राम( शालिग्राम)की सतह के विपरीत रगड़ कर देखना चाहिए।
उसके बाद उसे ऐसा प्रतीत होगा जैसे शालिग्राम( शालिग्राम)की सतह कनक के समान पीली हो गई है, और जब आप उसे अपने हाथों से पुनः उस खींचे हुए लकीरों को मिटाने का प्रयास करेंगे। तो आप देखेंगे कि वह सर्वदा के लिए उस पर इंगित हो चुका है।
आप चाहकर भी अपने द्वारा उकेरी गई किसी भी तरह की रेखा को आप मिटाने में असफल है, जबकि यही प्रयोग जब आप किसी आम पत्थर पर करेंगे ?तब देखेंगे कि आप आसानी से अपने हाथों से उस पर उकेरी गई रेखा या चित्र को मिटा सकते हैं, जबकि शालिग्राम पर उकेरी गई प्रत्येक चिन्ह सदा के लिए विद्यमान हो जाती है।
2)• नेपाल की गंडक नदी में पाया जाने वाला शालिग्राम पत्थर (shaligram pathar ki jankari) भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान के 24 अवतारों को दर्शाता हुआ यह पत्थर 24 प्रमुख रूपों में पाया जाता है, जिसकी आकृति कभी गोल तो कभी मत्स्य के समान दिखाई पड़ती है। कभी कुर्म के समान दिखाई देने वाला पत्थर प्राप्त होता है।
तो कभी गोल एवं काला रंग का पत्थर प्राप्त होता है।असली शालिग्राम के ऊपर भगवान विष्णु से संबंधित कई चिन्ह जैसे चक्र, शंख आदि जैसी चीजें स्वत: ही बनी हुई रहती है। प्रकृति जब उनका निर्माण करती है। तब वह अपनी अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में इस प्रकार की चिन्ह इन पत्थरों पर उतर देती है।
हालांकि इस प्रकार के शालिग्राम( शालिग्राम) (shaligram kya hota hai) केवल सौभाग्यशाली व्यक्तियों को प्राप्त होता है क्योंकि यह बहुत ही दुर्लभ किस्म के शालिग्राम( शालिग्राम) होते हैं।शालिग्राम( शालिग्राम) के अन्य रंग भी देखने को मिलते हैं, किंतु दुर्लभता के कारण अधिकतर लोगों को श्याम वर्ण के ही शालिग्राम प्राप्त होते हैं।
कभी भी असली शालिग्राम पूर्ण रूप से चिकना नहीं होता है, उसमें प्राकृतिक रूप से बनने वाली रेखाएं दरारें आदि मौजूद रहती है, जो उसके सत्य होने के प्रमाण को प्रमाणित करती है।
शालीग्राम की पहचान, shaligram ki pehchan
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3)• जब आप इसके अंदर की सतह को देखेंगे तब आप को इस के मुख पर स्वर्ण के वर्क दिखाई पड़ेंगे। हालांकि यह विधि केवल विशिष्ट शालिग्राम के ऊपर ही लागू होती है, क्योंकि हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता कि उसे स्वर्ण वर्क वाला शालिग्राम प्राप्त हो। उसके अंदर एक चक्र के समान आकृति दिखाई पड़ती है, या कुछ अलग चिन्ह दिखाई पड़े किंतु सारे भगवान विष्णु से संबंधित होते हैं।
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