लहसुनिया कब पहने – Lahsuniya Kab
Pahne
लहसुनिया कब पहने- ( Lahsuniya ratna kab dharan karna chahiye) केतु ग्रह से संबंधित रत्न होता हैl लहसुनिया रत्न केतु ग्रह को निरूपित करता है, तथा उसमें केतु ग्रह के दुष्प्रभाव को निष्फल करने की पूरी क्षमता विद्यमान रहती है, जिससे बहुत से जातकों के द्वारा लहसुनिया रत्न धारण किया जाता है, लहसुनिया रत्न देखने में बिल्ली के नेत्रों के समान होता है, तथा इसमें प्राकृतिक रूप से एक या 2 या उससे अधिक धारियां मौजूद रहती है, जिसे जब हम अंधकार में देखते हैं, तब प्रकाश उत्सर्जित होती हुई दिखाई पड़ती है, इसकी संगठित संरचना देखने में बहुत ही अद्भुत, अद्वितीय होती हैl रत्नों में तीसरा सबसे कठोर रत्न होने की उपाधि भी इसे प्राप्त है,जिसका कारण है, कि इसका घनत्व एवं गलनांक बहुत अधिक होता है।
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सबसे उत्तम गुणवत्ता वाले लहसुनिया रत्न( Lahsuniya kab pahanna chahiye) म्यानमार तथा सिलोनी लहसुनिया को माना जाता है। इसकी गुणवत्ता इसमें बने हुए बिल्ली के समान नेत्रों पर निर्धारित होती हैl यदि नेत्र गहरा है, तो उसका अर्थ है, कि वह बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाला रत्न है, एवं उसका मूल्य भी बहुत अधिक होता हैl भारत के विभिन्न क्षेत्रों से भी लहसुनिया रत्न प्राप्त होता है, जैसे- उड़ीसा ,झारखंड, हिमालय कश्मीर, विद्यांचल तथा महानदी जहां स्थित है lवहां के आसपास के कुछ क्षेत्रों में भी लहसुनिया रत्न प्राप्त होता हैl इससे बहुत से नामों से जाना जाता है, जैसे- वैदूर्य, विद्दू रत्न, बाल सूर्य ,कैट्स आई आदिl इसका रंग हरा भूरा पीला आदि हो सकता है।
लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna kab pahne) की यह खासियत होती है, कि जब आप इसे अंधेरे में रखेंगे तब इससे आपको प्रकाश प्रदीप्त होता हुआ दिखाई देगा, जब इसके आधार पर किसी प्रकाश उत्सर्जित होने वाले चीज को रखकर प्रकाश इससे पार करवाया जाए तो यह प्रकाश को पूरी तरह से अवशोषित कर लेता है, इससे कभी भी प्रकाश पार नहीं हो सकता है।
इसे धारण करने से पूर्व जातक को अपने लग्न कुंडली का विशेष रूप से आकलन करवाना चाहिए तभी जाकर लहसुनिया को धारण किया जाना चाहिए अन्यथा लाभ की जगह कहीं विध्वंसक हानि ना हो जाएl निम्नलिखित परिस्थितियों में लहसुनिया रत्न धारण किया जा सकता है-
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1. यदि कोई जातक केतु की दशा या महादशा जैसी चीजों से गुजर रहा है, जिसकी वजह से उसके जीवन में आकस्मिक घटनाएं बहुत अधिक घटने लगी है, एवं उसका जीवन उसे पूरी तरह से निरर्थक लगने लगा है, ऐसी परिस्थिति में इस ग्रह दोषों को दूर करने के लिए एवं केतु ग्रह की कुदृष्टि से बचने के लिए लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna ko pehna chahiye ya nahi)% धारण किया जा सकता है, जो केतु के द्वारा दिए जा रहे नकारात्मक प्रभाव को निष्फल करने की पूरी क्षमता रखता है, तथा जातक को विविध प्रकार से लाभ पहुंचाता है।
2. जातक की लग्न कुंडली में यदि केतु भागेश या पंचमेश में अवस्थित है, तो इस रत्न को धारण किया जा सकता है। लहसुनिया रत्न भाग्य को और अधिक प्रबल बनाता है, जिससे जातक को उन चीजों में भी सफलता प्राप्त होती है, जिसकी कल्पना उसने शायद सपने में भी ना की हो।
3. लहसुनिया रत्न( Lahsuniya ratna kab dharan kare) की खासियत है, कि यदि जातक को केतु अच्छा भी प्रभाव दे रहा है, तो उसके अच्छे प्रभाव को और अधिक प्रबल बनाने के लिए भी लहसुनिया रत्न धारण किया जा सकता हैl
4. केतु यदि किसी जातक की कुंडली में उच्च भाव में स्थित है, तब भी लहसुनिया रत्न को धारण करना बहुत शुभ होता है।
5. किसी जातक की लग्न कुंडली में केतु यदि द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचम नवम या दशम भाव में स्थित हो, तब भी लहसुनिया रत्न को धारण किया जा सकता है, एवं इसके द्वारा दिए जा रहे लाभों को उठाया जा सकता है।
6. यदि कोई जातक ऐसा है, जिसका संबंध उसके ससुराल पक्ष से बहुत ज्यादा खराब हैl इसके साथ साथ उसके संबंध अपने संतान पक्ष से बहुत खराब है, तथा आए दिन उसे संतान पक्ष से बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, तो इसका सीधा सा अर्थ है, कि उसके जीवन पर केतु का प्रभाव बहुत ही नकारात्मक पड़ रहा है।
ऐसी परिस्थिति में भी लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna ko kab pahna jata hai) धारण करना बहुत उपयुक्त माना जाता है, जिससे जातक के संबंध उसके ससुराल वालों के साथ साथ संतान पक्ष से भी सुधारते हैं, एवं उनके रिश्ते में मधुरता आती है, इसके साथ-साथ जब भी उसे जरूरत होती है, इन दोनों का सहयोग भी उसे प्राप्त होता हैं।
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7. कभी कभी किसी किसी जातक की लग्न कुंडली में केतु का प्रभाव नग्न रहता है, केतु पूरी तरह से निष्क्रिय रहता है, ऐसी अवस्था में केतु को गति देने के लिए तथा उसके अनुकूल प्रभाव को जीवन में प्राप्त करने के लिए लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna pahanne ke fayde) धारण किया जाता है।
केतु ग्रह को शनिदेव का अनुयाई एवं गुरु ग्रह का दास माना जाता है, जिसकी वजह से केतु के रत्न हो या उपरत्न शनि देव तथा गुरु बृहस्पति देव के शुभ दिनों पर केतु ग्रह से संबंधित रत्न को धारण किया जा सकता है।
सूर्य उदय से पूर्व कि जो समय होता है, वह केतु ग्रह से संबंधित होता है, जिसका उपयोग प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के अध्यात्मिक चरणों में सफलता प्राप्त करने के लिए किया जाता है, क्योंकि किसी भी जातक के जीवन में अध्यात्म के लिए सबसे उपयुक्त समय सूर्य उदय से पूर्व की बेला को माना जाता है और वह समय केतु का होता है।
केतु ग्रह उस वक्त अपना प्रबल प्रभाव दिखाता है, जिसकी वजह से अध्यात्मिक चीजों के लिए सबसे उपयुक्त समय यह होता है, इसके साथ-साथ बहुत से लोगों के द्वारा मंत्र सिद्धि ,तंत्र सिद्धि आदि भी इसी समय पूर्ण किया जाता है, ध्यान एवं योग के लिए भी यह समय सबसे अच्छा माना जाता है।
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केतु से संबंधित रत्न को गुरुवार या शनिवार के दिन सूर्य उदय से पूर्व तर्जनी उंगली या मध्यमा उंगली दाएं या बाएं हाथ की दोनों में से किसी भी दिन विभिन्न प्रकार से मंत्रों से अभिमंत्रित एवं प्रतिष्ठित कर रत्न को धारण किया जा सकता है, तथा रत्न को धारण करने के लिए सबसे उपयुक्त धातु अष्ट धातु या पंचधातु को माना गया है, और कम से कम पांच रत्ती का लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna pahanne ke labh) उस में पिरो कर धारण किया जाता है।
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