लहसुनिया रत्न के बारे में जानकारी –
Lahsuniya Ratna Ke Baare Me Jankari
लहसुनिया (Lahsuniya ratna ki jankari) केतु रत्न को निरूपित करता है, तथा इसका स्वामी ग्रह केतु ग्रह होता हैl लहसुनिया रत्न की यह खासियत होती है कि केतु से संबंधित विभिन्न प्रकार की शक्तियों को यह अवशोषित करता है, तथा इसमें केतु ग्रह से संबंधित विभिन्न प्रकार की भौतिक ऊर्जा का समावेशन होता हैl लहसुनिया रत्न देखने में बिल्कुल बिल्ली के नेत्रों के समान होता हैl इसका रंग हरा ,पीला ,भूरा आदि कुछ भी हो सकता है, इसमें मौजूद प्राकृतिक रूप से अशुद्धियां इसके रूप गुण को निर्धारण करती हैंl इसे कैट्स आई, वैदूर्य, संगी आदि नामों से जाना जाता हैl इसके विविध गुण इसके विभिन्न नामों के पीछे का कारक हैl विश्व के विभिन्न देशों से हमें लहसुनिया रत्न प्राप्त होता है, जैसे- भारत, म्यांमार, श्रीलंका ,ब्राजील आदिl म्यानमार तथा श्रीलंका से पाए जाने वाले लहसुनिया रत्न उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं।
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रत्न शास्त्र के अनुसार लहसूनिया रत्न (lahsuniya ratna ka mahatva) का बहुत महत्व माना जाता है, तथा छाया ग्रह केतु से संबंधित लहसुनिया रत्न की महत्ता बहुत अधिक बताई गई हैl किसी भी प्रकार के साधना मंत्र सिद्ध करना या अध्यात्मिक चीजों में सिद्धि प्राप्त करने के लिए लहसुनिया रत्न बहुत लोकप्रिय है lविभिन्न प्रकार के केतु जनित रोग, जैसे -अवसाद, अल्सर, कैंसर ,लकवा ,नेत्र संबंधित विकार, हड्डी संबंधित बीमारियों में यह रत्न बहुत कारगर होता है, तथा जातकों को इन सभी बीमारियों से निजात दिलाने की भी क्षमता रखता है।
किसी भी जातक के लग्न कुंडली में इसकी स्थिति को देखते हुए लहसुनिया रत्न को धारण करने की सलाह दी जाती है, जिससे जातक को किसके द्वारा दी जा रही दुष्प्रभाव या कष्टों से निजात मिल सके एवं इससे संबंधित विभिन्न रुके हुए कार्यों का समापन हो सके, कई बार ऐसी भी स्थिति होती है, कि यह जातक की कुंडली में सुप्त अवस्था या पूरी तरह से निष्क्रिय होता है, ऐसी स्थिति में जातक बहुत बड़ी बड़ी विडंबना ओ से गुजरता है, तथा इस ग्रह से संबंधित विभिन्न कार्य उसके अटके रहते हैं, किंतु जब भी लहसुनिया रत्न (lahsuniya ratna dharan karne se kya hota hai) धारण किया जाता है, तो केतु ग्रह सक्रिय हो जाता है, एवं उससे संबंधित जितने भी कार्य जातक के जीवन में पूर्ण होने से रुक गए थे उन सभी को संपन्न करने में लहसुनिया रत्न बहुत कारगर सिद्ध होता है।
केतु से संबंधित दोषों को दूर करने के लिए लहसुनिया रत्न (lahsuniya ratna kaisa hota hai) धारण किया जाता है, केतु से संबंधित बुरे प्रभाव के कारण व्यक्ति का जीवन दिशाहीन हो जाता हैl जातक के जीवन में अनेक आकस्मिक दुर्घटनाएं घटने लगती हैl उसे महत्वपूर्ण कार्यों में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं होती हैl वह तंत्र मंत्र ,नजर दोष, जादू टोना आदि का शिकार बहुत जल्दी हो जाता है, जिसकी वजह से उसकी परेशानियां दिनों दिन बढ़ती चली जाती हैl उनका निदान उसे नजर नहीं आता है, बिना मतलब के झगड़े झंझट भी उसके जीवन में अत्यंत विकट रूप से बढ़ने लगते हैं, केतु ग्रह का संबंध संतान पक्ष से भी होता हैl ऐसे में व्यक्ति का संबंध उसके संतान पक्ष से बहुत ही खराब होने लगता है।
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उसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना उसके संतान पक्ष से होने लगती हैl व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोग होने लगते हैं, कभी-कभी ऐसी भी परिस्थिति बन जाती है, जब जातक वर्तमान में जीने की जगह भविष्य में घटने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों के बारे में अत्यधिक सोचने लगता है, जिससे वह मानसिक अवसाद जैसी स्थिति में पहुंच जाता है, जो उसके लिए बहुत घातक भी सिद्ध हो सकता हैl उपर्युक्त परेशानियों से निजात पाने के लिए लहसुनिया रत्न (lahsuniya ratna ke fayde) सबसे उपयुक्त माना जाता है।
हीरे तथा माणिक के बाद सबसे कठोर रत्न लहसुनिया रत्न को माना जाता हैl लहसुनिया रत्न का गलनांक बहुत अधिक होता है, क्योंकि प्राकृतिक रूप से निर्मित कोई भी पत्थर विभिन्न प्रकार की मौसमी घटनाओं के चक्र के कारण उच्च दाब एवं उच्च ताप में विभिन्न प्रकार के शैलो के रूपांतरण से बनते हैंl जब कभी लहसुनिया रत्न (lahsuniya ratna pahanne ke fayde) को ताप पर रखा जाता है, तब उसकी रंगत और अधिक निखर जाती है, वह देखने में और अधिक आकर्षण पूर्ण लगता हैl असली लहसुनिया रत्न को जब अंधेरे में रखा जाता है, तब उससे प्रकाश उत्सर्जित होते हुए दिखाई पड़ता है, बिल्कुल बिल्ली के आंखों के समान, जब कभी आप इस पर प्रकाश डालते हैं तब यह प्रकाश को अवशोषित कर लेता है।
लहसुनिया रत्न (lahsuniya ratna ka upyog kaise kare) को जब किसी कपड़े से रगड़ कर साफ़ किया जाता है, तो इसकी चमक और अधिक बढ़ जाती हैl इसे यदि एक या दो दिनों के लिए किसी हड्डी के ऊपर रख दिया जाए तो उस हड्डी में छेद करने की क्षमता रखता हैl प्राकृतिक रूप से निर्मित लहसुनिया रत्न की यह खासियत होती है, की इसके किनारे हल्के खुर्दरे होते हैं, तथा उसके पीछे मशीन से कटाई के निशान मौजूद रहते हैं, जबकि कृत्रिम रूप से निर्मित लहसुनिया रत्न में उपर्युक्त वर्णित गुनों में से एक भी गुण मौजूद नहीं रहता है।
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केतु ग्रह को शनि ग्रह का अनुयाई एवं गुरु ग्रह बृहस्पति का दास माना जाता है, इसलिए इससे संबंधित रत्न लहसुनिया को धारण करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन 7 दिनों में से शनिवार एवं गुरुवार को माना जाता हैl लहसुनिया रत्न (lahsuniya ratna ka prabhav) के उत्तम प्रभाव को देखने के लिए इसे कम से कम जिस भी जातक के द्वारा यह धारण किया जा रहा है lउसे 5 रत्ती से कम का धारण नहीं किया जाना चाहिए एवं धारण करने से पूर्व लहसुनिया रत्न के विभिन्न मापदंडों या पैमानों की जांच अवश्य करनी चाहिए, जिससे यह बात साफ हो सके, कि वह एक असली रत्न है, या नकली रत्न है।
जातक को उसके मनवांछित कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है, या मनवांछित कार्य संपन्न हो सकते हैंl लहसुनिया रत्न (lahsuniya ratna dharan karne ke fayde) को विधि पूर्वक केतु ग्रह के बीज मंत्र से अभिमंत्रित एवं प्रतिष्ठित कर धारण करना चाहिए, इसे मध्यमा उंगली में धारण किया जाना चाहिए, इसे आप पंच धातु या अष्ट धातु या चांदी में पिरो कर इसके पेंडेंट या अंगूठी को धारण कर सकते हैंl यह धनु लग्न तथा मकर लग्न वाले जातकों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो हो सकता है, तथा उन्हें उनके जीवन के सर्वोत्तम ऊंचाइयों तक ले जाने की क्षमता लहसुनिया रत्न में व्याप्त होती है।
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