नीलम रत्न धारण करने की विधि – Neelam Ratna Dharan
Karne Ki Vidhi
नीलम रत्न धारण करने की विधि – (neelam stone dharan karne ki vidhi) आज का हमारा विषय हैl जय बाबा भैरव नमस्कार मित्रोंl आज हम नीलम रत्न धारण करने की सही विधि इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे।
नीलम रत्न (neelam stone pahanne ki vidhi) जिसे शनि ग्रह से संबंधित रत्न माना जाता है, इसमें बहुत ही अद्भुत शक्तियां विद्यमान हैl वर्तमान की परिपेक्ष में नीलम रत्न बहुत ही अमूल्य रत्न है, यह एक अतुलनीय रत्न है, ऐसा माना जाता है, कि जिस व्यक्ति के द्वारा इस रात को धारण किया जाता है उसके जीवन में विभिन्न प्रकार के बदलाव देखने को मिलते हैं।
उसके गुप्त शत्रुओ का सर्वनाश होना शुरु हो जाता हैl उसे शत्रु पर विजय प्राप्त होती हैl नजर- दोश आदि चीजों से भी उसे मुक्ति मिलती है, उसके व्यक्तित्व में एक अलौकिक रुपांतरण देखने को मिलता है, इसके अंतर्गत उसमें धैर्य की वृद्धि होती है, वह एक धैर्यवान व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, तथा रुपयों पैसे धन संबंधित आदि चीजों से परिपूर्ण रहता है।
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उसके जीवन में जितनी भी बड़ी कठिनाई क्यों ना आ जाए, जटिल से जटिल परिस्थितियों में भी वह अडिग रहता है, तथा अपने कौशलों का उपयोग कर हर चीज से बाहर आने की क्षमता रखता है। भावनात्मक स्तर पर भी ऐसे लोग काफी मजबूत होते हैंl इनका ह्रदय काफी मजबूत होता है,
इसकी वजह से यह निर्भीक होकर समाज में उचित पद प्रतिष्ठा धारण कर काफी आगे बढ़ते हैंl इनके बहुत से गुप्त शत्रु इनके प्रगति को देखकर बहुत जल खो ड़ कर मरते हैं, किंतु समय के साथ इनके शत्रुओं का खुद पर खुद सर्वनाश हो जाता है, जिंदगी के विभिन्न आयामों पर इन्हें अनेक प्रकार से लाभ प्राप्त होता हैl इसका वर्ण भले ही नीला हो किंतु नीलम (Neelam Ratna Dharan Karne Ki Vidhi) के और भी बहुत से प्रभावशाली प्रकार के रत्न होते है, जिन का रंग गुलाबी ,नारंगी, सतरंगी, रंग बदलने वाला आदि भी होता है।
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नीलम रत्न को पहनने से लोगों के जीवन में बहुत सी आकस्मिक घटनाएं घटने लगती हैं lयह घटनाएं शुभता तथा अशुभता दोनों ला सकती है, इसलिए बिना सोचे समझे नीलम रत्न (neelam stone pahanne ki vidhi kya hai in hindi) को धारण नहीं करना चाहिएl ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेष वृष तुला वृश्चिक मकर राशि को आम तौर पर नीलम रत्न धारण करने से अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं।
इसे धारण करने से पहले कुंडली के चौथे, पांचवें, दसवें या ग्यारहवें भाग को भी देखा जाता है, वैसे तो हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार के ग्रहों का गोचर होते रहता है, तथा उनके परिणाम भी सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों मिलता रहता है, किंतु सबसे अधिक लोगों में यदि किसी ग्रह से संबंधित डर है, तो वह है, शनि ग्रहl शनि ग्रह जिन्हें तीनों लोगों का न्यायधीश कहा जाता है।
उनका काम ही है, अनुचित करने वाले लोगों को दंडित करनाl इनके प्रकोप से स्वयं मां सती भी नहीं बच पाई थीl राजा हरिश्चंद्र एवं अनेकों ऐसे महान लोग थे, जिनकी छोटी सी गलती को भी शनि देव के द्वारा नजरअंदाज नहीं किया गया और उन्हें दंडित किया गया lशनि ग्रह जब दंड देने पर आते हैं, तो हमारे तुच्छ से तुच्छ कर्मों का हिसाब करते हैं, जब यह न्याय करने पर आते हैं तो सामने वाला देवता है, या दानव या मनुष्य या कोई और जीव किसी को भी क्षमा नहीं करते हैं।
इन्हें केवल आपके द्वारा किए जा रहे कर्मों का फल आपको देना है lप्रकृति द्वारा इनका निर्माण संतुलन स्थापित करना है, अन्यथा लोग अपनी नीचता की हद पार कर देंगेl यदि उनमें किसी चीज को लेकर भय नहीं रहेगा तो, प्रकृति हमारे ऊपर बहुत ही ज्यादा दया दृष्टि दिखाती है, इसी की वजह से शनि ग्रह के दुष्प्रभाव के तोड़ के स्वरूप में उन्होंने हमें नीलम जैसे रत्न (neelam pahanne ki vidhi) को प्रदत कर हमें निहाल कर दिया है।
नीलम रत्न धारण की करने की सही विधि क्या है-
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1. नीलम रत्न (neelam stone pahanne ka samay) अथवा उसके ऊपर रत्नों को पहले अच्छी तरह से जांच परख कर लें कि आपके द्वारा लिया जा रहा नीलम रत्न असली है या नकली है।
2. इसको धारण करने से पूर्व अपने कुंडली की विभिन्न गणनाओं को सटीक तरीके से आकलन करवाने के पश्चात ही इसे धारण करने की सोचे।
3. किसी भी शुभ मुहूर्त में इसे खरीदने के पश्चात गंगाजल में डुबोकर रखें lतत्पश्चात पंचामृत आदि से युक्त तरल में डुबोकर 1 घंटे तक घर के मंदिर में छोड़ दीजिए, इस बात का अवश्य ध्यान रखें की जिस भी नीलम (neelam ratna pahanne ka samay kya hai) का उपयोग आप करने जा रहे हैं।
उसका वजन 6 से 7 रत्ती से कम ना हो और यदि उपरत्न हुआ तो उससे अधिक रत्ती का होना चाहिए क्योंकि रत्नो की एक खासियत होती है, कि वह काफी दिनों तक अपने अंदर उर्जा समाहित रख सकते हैं, किंतु जो उनके उपरत्न होते हैं, उनमें कुछ विशिष्ट समय अवधि तक है, ऐसी शक्तियां विद्यमान रहती है।
4. उसके पश्चात शुद्ध जल से धूलकर शनि मंत्रों के उच्चारण के साथ पुत्र रत्न को अभिमंत्रित करेंl यह काम आप किसी विद्वान पंडित से भी करवा सकते हैं।
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5. आप इसे कृष्ण पक्ष के पहले शनिवार को धारण कर सकते हैं, सबसे उपयुक्त समय मध्य रात्रि को माना गया है, अथवा सूर्य उदय से पूर्व इसे धारण करने का सर्वोत्तम समय माना गया हैl
6. इसे धारण करने वाले दिन आपको मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, किसी मंदिर में जाकर दान दक्षिणा अवश्य दें, एवं किसी भूखे को भोजन अवश्य कराएं एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
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