माणिक रत्न के प्रकार – Manik Ratna Ke
Prakar
पूरे ब्रह्मांड में सबसे बड़ा ऊर्जा का स्रोत सूर्य ग्रह को माना जाता है, जितने भी आकाशीय ग्रह एवं उपग्रह मौजूद है। सभी सूर्य ग्रह के ऊर्जा के स्रोत के वजह से ही उन सभी का अस्तित्व इस ब्रह्मांड में मौजूद है, हमारी पृथ्वी पर जीवन भी सूर्य देव की कृपा से ही है lयदि सूर्य की किरणें पृथ्वी पर अपना प्रभाव नहीं दिखाएंगे या सूर्य की किरने अपना रुक पृथ्वी से मोड लेंगी तो ऐसी परिस्थिति में पृथ्वी पर से पूरी तरह जीवन का नामोनिशान खत्म हो जाएगा। पृथ्वी जीवन हीन हो जाएगी इसलिए सूर्य ग्रह को पिता की उपाधि से अलंकृत किया गया हैl पूरे ब्रह्मांड का पिता तुल्य सूर्य ग्रह को माना जाता है। विभिन्न प्रकार के ग्रहों में सबसे ऊंची उपाधि इन्हें राजा के रूप में दी गई है।
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सूर्य ग्रह हमें प्रकाश एवं ताप प्रदान करते हैं। इनके द्वारा प्रदान की जाने वाली रोशनी में विभिन्न प्रकार के ऐसे तत्व होते हैं, जो जीवन की उत्पत्ति के लिए बहुत अधिक आवश्यक होते हैंl इसके साथ सात उसमें बहुत से औषधीय गुण भी होता है, जो लोगों को विभिन्न प्रकार से स्वस्थ रखने में मदद करता है। इनकी किरणें अद्वितीय गुण वाली होती है, जिसके वजह से विभिन्न प्रकार के जीव जंतु अपना भोजन बनाते हैं, एवं उनका विकास इन की किरणों से संभव हो पाता है। जीवन की आधारभूत संरचना का प्राय सूर्य ग्रह से ही संबंधित होता है।
सृष्टि के संचालन करता सूर्यदेव ही है, हमारे अनगिनत देवी देवताओं में से सबसे प्रत्यक्ष रूप से विद्यमान देवता है -सूर्य देव, विभिन्न प्रकार के पारलौकिक शक्तियों के स्वामी सूर्य देव का राशि रत्न माना जाता है- माणिक (manik ratna kaisa hota hai) एक ऐसा रत्न है, जो देखने में रक्त वर्ण का होता है, या कभी कभी गुलाबी रंग का भी होता है, इसके संयोजक की वजह से इसका रंग गुलाबी होता है, तथा इसमें प्राकृतिक रूप से जो भी अशुद्धियां मौजूद रहती है, उसी की वजह से इसका रंग गहरा गुलाबी या फिर हल्का गुलाबी होता है। इस रत्न का संयोजक एलमुनियम ऑक्साइड ,लौह तत्व तथा क्रोमियम होता है।
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पूरे सृष्टि में माणिक रत्न (manik ratna ke kitne prakar hai) विभिन्न देशों में पाया जाता है, तथा अलग-अलग देशों में इसे अलग-अलग नामों से एवं इसकी अलग-अलग उपयोगिता एवं महत्व के लिए जाना जाता हैl हर संस्कृति हर सभ्यता में माणिक रत्न को तथा सूर्य ग्रह को बहुत ऊंची उपाधि से नवाजा गया है, तथा इसके महत्व को वर्णित करने के लिए शब्द भी कम पड़ गए हैं, यह एक महत्वपूर्ण रत्न है, जो 9 रत्नों में से एक होता है, हीरे के बाद सबसे कठोर रत्न की उपाधि माणिक रत्न को ही प्रदान की गई है, जिसकी वजह से इस का गलनांक बहुत अधिक होता है, इसके साथ-साथ इस का घनत्व बहुत ज्यादा होता हैl विश्व में सबसे अच्छे माणिक रत्न म्यानमार से प्राप्त होता है।
माणिक रत्न (manik ratna ke prakar kya hai) का लाभ लोग विभिन्न प्रकार से उठा सकते हैं, किंतु जैसा कि आप लोग जानते हैं, कि हर एक पत्थर हर किसी को अनुकूल परिणाम नहीं देता है। उसी प्रकार माणिक रत्न भी हर किसी को नहीं धारता है, इसे धारण करने से पूर्व किसी विद्वान ज्योतिष से अपने कुंडली का विशेष अवलोकन कराना आवश्यक होता है। कुंडली की सटीक गणना के आधार पर ही माणिक रत्न को धारण करना चाहिए, ऐसा ज्योतिष विद्वानों का मद होता है, कि माणिक रत्न को मेष, सिंह एवं धनु लग्न के जातक धारण कर सकते हैं, जिससे इन्हें विभिन्न प्रकार से लाभ प्राप्त हो सकता है। विशिष्ट परिस्थितियों में वृषभ लग्न के जातक भी इस रत्न को धारण कर लाभ उठा सकते हैं।
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इसे बहुत से रत्नों के साथ भी धारण नहीं करना चाहिए जैसे शनि से संबंधित रत्न यदि किसी व्यक्ति के द्वारा धारण किया गया है, तो ऐसे में उन्हें माणिक रत्न (manik ratna dharan karne ke fayde) को धारण करने से बचना चाहिए क्योंकि सूर्य ग्रह के पुत्र शनि देव में 36 का आंकड़ा माना जाता है, तथा शनिदेव को पितृ शत्रु से संबोधित किया जाता है। ऐसा माना जाता है, कि सूर्य ग्रह की रोशनी जहां समाप्त होती है। वहां से शनि ग्रह की समराज्य की शुरुआत होती है, इसलिए यदि किसी जातक के द्वारा शनि ग्रह से संबंधित किसी भी प्रकार का रत्न धारण किया गया है, तो उन्हें माणिक रत्न धारण करने से बचना चाहिए, अन्यथा उन्हें लाभ होने की जगह बहुत बड़ी परेशानी हो जाएगी एवं वह विकट परिस्थितियों में भी फस सकते हैं, जिससे निकल पाना असंभव हो जाएगा।
मिथुन, तुला ,कुंभ, कन्या एवं मकर लग्न वाले राशियों को भी माणिक रत्न को धारण करने से बचना चाहिए, इससे उनके जीवन में केवल व्यवधान ही उत्पन्न होगा। चाह कर भी माणिक रत्न से उन्हें लाभ प्राप्त नहीं हो सकता है, यह उनके जीवन में विकट परिस्थितियों खड़ा कर देगा तथा जीवन चक्र में विभिन्न प्रकार की बाधाएं उत्पन्न करेगा, जिससे आप दिनोंदिन केवल मुसीबतों को ही दावत देते चले जाएंगे। सूर्य ग्रह अग्नि तत्व को निरूपित करते हैं, जिसकी वजह से उच्च रक्तचाप या हृदय संबंधित रोगियों को माणिक रत्न (manik ratna ka prabhav) को धारण करने से बचना चाहिए। हो सकता है, इसकी वजह से आपकी बीमारी और अधिक बढ़ जाए एवं आप की मानसिक स्थिति के साथ-साथ शारीरिक स्थिति भी और अधिक दयनीय हो जाए।
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माणिक रत्न (manik ratna dharan karne se kya hota hai) देखने में बहुत सुंदर होता है, तथा यह पारदर्शी रत्न होता है। माणिक रत्न विभिन्न प्रकार के रंगो के हो सकते हैं, जैसे- काले, नीले ,जामुनी रंग के आदि यह सभी माणिक रत्न दुर्लभ होने के साथ-साथ इनकी शक्तियां भी विशिष्ट होती है, जिसकी वजह से यह सभी बहुत मूल्यवान होते हैं, तथा हर किसी के बस की बात नहीं होती है, कि इन दुर्लभ गुणवत्ता वाले मानिक के रत्न को धारण कर सकेl विभिन्न प्रकार से सूक्ष्म रंगभेद के आधार पर इनकी कई प्रकार की किस में बताई गई है, जिसमें से कुछ निम्न है- पद्मराग- यह रक्त वर्ण का होता है, जिसे उत्तम गुणवत्ता वाला माणिक रत्न माना जाता है। सौगंधिक- यह भी देखने में रक्त वर्ण का होता है, किंतु इसके रंग की आभा थोड़ी हल्की होती है, तथा इसकी गुणवत्ता भी अच्छी मानी जाती है।
नीलगंधि- माणिक रत्न का रंग नीलम से मिलता जुलता है, इसके साथ ही यह लाल रंग का भी मिश्रण होता है। जामुनी- इसका रंग जामुन के रंग के समान होता है, जिसकी वजह से इसे जामुनी कहा जाता हैl कुरुबिंद- माणिक रत्न (manik ratna ki jankari) रक्त वर्ण होने के साथ-साथ हल्का पीला रंग का भी होता है, इन दोनों रंग के मिश्रण से बना हुआ माणिक रत्न देखने में बहुत सुंदर होता है, तथा इसे भी माणिक की ही उपाधि प्राप्त है। इन सभी माणिक रत्न में भी विशिष्ट गुण होते हैं, जिसकी वजह से इसकी मांग बहुत अधिक होती है। माणिक रत्न की महत्ता केवल कुछ शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है, यह एक अद्वितीय ,अद्भुत रत्न है।
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