नीलम रत्न किस उंगली में पहनना चाहिए –
Neelam Ratna Kis Ungali Me Pahanna
Chahiye
नीलम रत्न किस उंगली में पहनना चाहिए -आज का विषय है।
नीलम (neelam ratna konsi ungli me dharan karna chahiye) जिसकी शोभा एवं आकर्षण अतुल्य है, इसके नीले वर्ण के समक्ष बहुत सारे रत्न फिके पड़ जाते हैंl इसका वर्ण बिल्कुल अपराजिता पुष्प के रंग के समान होता है, चंचल सूर्य की किरणें तथा चंद्र की शीतल किरने जब इस पर पड़ती है, तो एक समान इससे नीला प्रकाश उत्सर्जित होता हैl नीलम रत्न का घनत्व बहुत अधिक होता है। नीलम रत्न में शनि ग्रह से संबंधित विभिन्न अतुलनीय एवं गुप्त शक्तियां विद्यमान रहती हैl नीलम रत्न शनि ग्रह से संबंधित होता है, ऐसा माना जाता है, कि यदि शनि ग्रह से संबंधित किसी प्रकार की भी परेशानी यदि किसी भी जातक को हो रही है, तो उसके कुंडली के विभिन्न गननाओ के आधार पर नीलम रत्न धारण को करने की सलाह दी जाती है।
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नीलम रत्न (neelam ratna kis ungli me dharan kare) शनि ग्रह के विभिन्न ऊर्जा को अवशोषित करने की अद्भुत क्षमता रखता है, तथा हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सकारात्मक एवं अच्छे बदलाव लेकर आता है, जिससे हमारा जीवन सुगम एवं सफल होता हैl बहुत से लोगों को लगता होगा कि नीलम केवल नीले रंग का होता है, किंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि विभिन्न प्रकार के रंगो संयुक्त नीलम भी पृथ्वी के कुछ दुर्लभ स्थानों पर पाया जाता है, जिन का रंग नीला, गुलाबी ,नारंगी सतरंगी, रंग बदलने वाला नीलम तारा नीलम आदि हो सकता हैl शनि ग्रह जिसे महा न्यायधीश की उपाधि दी गई है lइनका न्याय का डंका जब बचता है, तो देवताओं को भी उनके कर्मों के हिसाब से यह फल देते हैं, तो ऐसे में हम तुच्छ मानव की क्या औकात की इनके समक्ष कुछ भी कह ,सुन और कर सकेंl शनि देव को सूर्यपुत्र भी कहा जाता है, किंतु यह पितृ शत्रु भी है।
इन्हें ज्योतिष विज्ञान में मारक ,दुख ,पीड़ा अशुभता आदि का कारक माना जाता है, लोग इनकी कृपा पाने के लिए बहुत से पूजा पाठ आदि भी करवाते हैं, ताकि इन के प्रकोप से बच सके किंतु लोग यह भूल जाते हैं, कि शनि देव कर्म फल दाता है, इन्हें केवल आपके अच्छे या बुरे कर्मों से ही मतलब है l आपको इन्हीं दो गुणों के आधार पर आपको आने वाले समय में इनके द्वारा दंड या पुरस्कार दिया जाता हैl जल- थल ,अग्नि ,आकाश पवन सभी स्थलों के महा न्यायाधीश है- शनि ग्रह l भारत में शनि देव के बहुत से प्रसिद्ध मंदिर है, जो प्राचीन काल से ही भारत में स्थित हैl इन्हें दुख, शुद्र वर्ण, तामस प्रकृतिवाद, प्रकृति प्रधान, भाग्य ,नीरस वस्तुओं पर आधिपत्य के लिए जाना जाता है, ऐसा माना जाता है, कि जहां कहीं भी सूर्य ग्रह की किरणों की सीमा समाप्त होती है, एवं सूर्य की परिधि खत्म होता है, वहां से शनि ग्रह का आधिपत्य स्थापित होता है।
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शनि ग्रह सत्य तथा असत्य के बीच की परख को पहचानने की विशिष्ट क्षमता हमें प्रदान करते हैं, शनि ग्रह जिस किसी की राशि में नीच स्थान पर रहते हैं, उसे बहुत सी कष्टों का सामना करना पड़ता है, उसका जीवन विषम परिस्थितियों से गुजरता रहता हैl मानसिक अवसाद जैसी स्थिति उस व्यक्ति की हो जाती है, तथा विभिन्न प्रकार की उलझन में उलझा होकर अपने लक्ष्य से बहुत दूर चला जाता है, एक तरह से सांसारिक सुखों को त्याग कर अपने ही मन की उलझन में उलझ कर रह जाता है, किस ओर उसकी जिंदगी जा रही है, उसे कोई खबर ही नहीं रहती है। बस अपनी ही दुनिया में वह खोया रहता है, समाज से बिल्कुल अलग ना उसमें खुशी का भाव होता है, ना उसमें दुख का भाव होता हैl बस वह किसी गहरी चिंता में हर वक्त डूबा रहता है, ऐसे जातक को धन संबंधित हानि भी बड़े स्तर पर होती है, तथा मानहानि की भी प्रबल संभावना बनी रहती है।
कभी-कभी किसी जातक की कुंडली में यदि शनि ग्रह अत्यधिक नीचे स्थान पर होता है, तब उस परिस्थिति में जातक आत्महत्या जैसे कदम भी उठा सकता हैl अतः इनके द्वारा दिए जा रहे पीड़ाओ को प्रारंभिक स्तर पर ही पहचान कर उनका उपचार अवश्य करना चाहिए। शनि ग्रह सबसे धीमी गति से चाल चलने वाला ग्रह है, जब भी किसी की कुंडली में इसका गोचर होता है, इनका स्थान कहीं नीच जगह पर हो तो ऐसे में जातक को काफी दिनों तक कष्टदायक जीवन जीना पड़ता है lउसके जीवन से सारी खुशियां चली जाती हैl उसका जीवन पूरी तरह निरश हो जाता है lउसमें कोई भाव बाकी नहीं रह जाती है, घर परिवार के लोगों से भी मनमुटाव बने रहते हैं, किंतु यदि किसी जातक की कुंडली का अच्छे से विवरण कर विस्तृत जानकारी को परखने के बाद यदि किसी विद्वान ज्योतिष के द्वारा किसी को नीलम रत्न (neelam ratna kis ungli me pahne) धारण करने की सलाह दी जाती है, तो ऐसे में शनि ग्रह के द्वारा दी जा रही विभिन्न प्रकार की नकारात्मक पद्धतियों का खात्मा होना शुरू हो जाता है, एवं तीव्रता के साथ आपके जीवन में अच्छे एवं शुभ बदलाव आने लगते हैं।
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मन हमेशा पुलकित रहता है, तथा चेहरे पर एक अजीब सा आकर्षण का भाव रहता है, जातक दृढ़ संकल्प तथा धैर्यवान बनता है, तथा उसके जीवन में जितनी भी समस्याएं आए, उसमें बिना घबराए सभी चीजों को सटीक तरीके से सुलझा लेता है।
नीलम रत्न (neelam ratna kis ungli me pahna jata hai) को धारण करने का भी सबसे उत्तम समय होता है, शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार के दिन इसे गंगाजल तथा पंचामृत से स्नान कराकर शनि मंत्रों के द्वारा अभिमंत्रित कर ने के पश्चात बजरंगबली के चरणो में अथवा भोलेनाथ के चरणों में रखकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें तथा इसे दाएं हाथ या बाएं हाथ की मध्यमा उंगली में अर्धरात्रि या सूर्योदय से पूर्व धारण कर सकते हैं, किंतु इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि नीलम रत्न को धारण करने के पश्चात किसी भी प्रकार से किसी से लड़ाई झगड़ा आदि ना करें lमांस मदिरा आदि का भी सेवन करना वर्जित है, जिस शनिवार आपने नीलम रत्न को धारण किया है हो सके तो किसी भूखे को भोजन अवश्य कराएं एवं उसका आशीर्वाद प्राप्त करें।
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