लहसुनिया रत्न धारण करने की विधि –
(Lahsuniya Ratna Dharan Karne Ki
Vidhi)
1. आप जिस भी रत्न को धारण करने जा रहे हैं, जिसे आप अंगूठी या पेंडेंट या ब्रेसलेट के रूप में धारण कर सकते हैंl सबसे पहले उसके गुणवत्ता की जांच करना आवश्यक पहलू है, क्योंकि केवल प्रमाण पत्र से ही यह निर्धारित नहीं हो जाता कि आपके द्वारा खरीदा गया रत्न पूरी तरह से दोस मुक्त है क्योंकि आजकल प्रमाण पत्र बनवाना कहीं से भी कोई मुश्किल कार्य नहीं हैl अतः विभिन्न मापदंडों एवं पैमानों को अपनाकर पहले यह जांच लें कि आपके द्वारा धारण किया जाने वाला रत्न पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से निर्मित एक रत्न है, ना कि कोई शीशे का टुकड़ा जिससे विभिन्न प्रकार की रासायनिक अभिक्रिया ओं के द्वारा प्रयोगशाला में निर्मित किया गया है, और उसे एक रत्न का स्वरूप देकर बेचा जा रहा है।
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ऐसे में आप उस रत्न के प्रभाव से वंचित रह जाएंगे, जिस इच्छा को मन में लिए आप लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna ke labh) धारण कर रहे हैं, वह इच्छा का भी पूर्ण ही नहीं हो पाएगी क्योंकि प्राकृतिक रूप से निर्मित रत्नों में कुदरती तौर पर विभिन्न प्रकार की भौतिक ऊर्जा मौजूद रहती है, जिसका सीधा संबंध उसके स्वामी ग्रह से होता है, तथा उसका निर्माण बहुत ही कठिन परिस्थितियों के द्वारा होता है, जबकि कृत्रिम रूप से रत्नों में कोई ऊर्जा व्याप्त नहीं होती है, वह केवल देखने में बहुत ही सुंदर और आकर्षक होता है, किंतु उसमें किसी भी प्रकार की ऊर्जा मौजूद नहीं होती है, वह पूरी तरह से निष्क्रिय रहता है।
2. नक्षत्रों का भी हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है, तभी तो अलग-अलग नक्षत्र में हमें अलग-अलग अनुकूल एवं प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलते हैं lहमारे पूर्वजों के द्वारा तो नक्षत्रों के अनुसार बहुत से खानपान वर्जित किया जाता था, जिससे हम विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचे रहें lकेतु से संबंधित नक्षत्र है- अश्विनी ,मघा एवं मूल नक्षत्र इन तीनों में से कोई भी नक्षत्र में लहसुनिया रत्न को धारण किया जा सकता है।
3. आपके द्वारा धारण किया जाने वाला लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna dharan vidhi in hindi) की अंगूठी हो या पेंडेंट हो या फिर उसका ब्रेसलेट हो आप जो भी चीज धारण करने वाले हैं, उसे आप अष्ट धातु या पंचधातु या चांदी में पिरो कर धारण कर सकते हैं, किंतु सबसे उपयुक्त होता है, अष्ट धातु या पंचधातुl
4. मध्य रात्रि से लेकर सूर्य उदय से पूर्व स्नान आदि से निवृत होकर सबसे पहले आपके द्वारा धारण किया जाने वाला लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna ke fayde) को गंगा जल तथा पंचामृत में डुबोकर कुछ देर के लिए छोड़ दें जिससे उसमें व्याप्त अशुद्धियां दूर हो सके एवं धारण करने से पूर्व वह पूरी तरह पवित्र हो सके।
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5. उसके पश्चात उसे अच्छी तरह से साफ कपड़े से पोछ कर अपने घर के मंदिर में किसी स्वच्छ कपड़े के ऊपर उसे रखकर कपूर एवं लॉन्ग एवं गूगल से उसकी आरती उतारेl उसे धूपबत्ती दिखाए यदि संभव हो तो कुछ टुकड़ा ब्रास का जहां लहसुनिया रत्न आपने रखा है, वहां रख दें क्योंकि कपूर में यह खासियत होती है, कि अपने आसपास विद्यमान वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा को यह नष्ट कर देता है, यदि किसी भी प्रकार की नकारात्मकता लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna dharan karne ke fayde) में बाकी रह गई होगी तो यह उन सभी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने की क्षमता रखता है, क्योंकि रत्नों की खासियत होती है, कि जब वह किसी भी प्रकार के त्वचा के संपर्क में आते हैं, तब त्वचा उसमें विद्यमान भौतिक ऊर्जा को अवशोषित करने लगती है, जिसकी वजह से रत्नों में व्याप्त ऊर्जा का क्षरण होने लगता है, इसलिए धारण करने से पूर्व उसे पूरी तरह से शुद्धि करना एवं उसके अंदर व्याप्त नकारात्मकता को नष्ट करना बहुत आवश्यक होता है।
6. उसके पश्चात केतु ग्रह से संबंधित बीज मंत्र का उच्चारण कर लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna pahanne ki vidhi) को प्रतिष्ठित एवं अभिमंत्रित करें जितना हो सके उतना अधिक केतु के बीज मंत्र का उच्चारण करें, इससे लहसुनिया रत्न की ऊर्जा शक्ति बहुत जल्द ही जागृत होने लगती है lइस से अभिमंत्रित करते वक्त इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आपके द्वारा उच्चारित किया जा रहा मंत्र पूरी तरह से शुद्ध हो तब भी आप इसकी ऊर्जा को जागृत करने में सक्षम हो पाएंगे जिस प्रकार हमें हमारे नामों से बुलाया जाता है, तभी हम किसी व्यक्ति के बुलाए जाने पर प्रतिक्रिया देते हैं l
उसी प्रकार मंत्र भी कार्य करता है, हमें जिनकी कृपा प्राप्त होनी होती है, या जिनकी ऊर्जा की आवश्यकता हमें होती है lहम उन्हें उनके विशिष्ट मंत्रों के माध्यम से आवाहन कर बुलाते हैं, इसलिए मंत्रों का उच्चारण करते वक्त उसके शुद्ध वर्तनी पर ध्यान रखना बहुत आवश्यक है lयदि आप किसी भी प्रकार से स्वयं मंत्र जप करने में असक्षम है, तो आप किसी विद्वान पंडित का भी सहारा ले सकते हैं, आप चाहे तो मंत्रों का उच्चारण किसी विशिष्ट मुद्रा को लगाकर भी कर सकते हैं, या फिर काले हकीक की माला से भी केतु ग्रह के बीज मंत्रों का उच्चारण कर सकते हैं।
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7. केतु से संबंधित देवता भगवान विघ्नहर्ता श्री गणेश को माना गया है, इसलिए आपके द्वारा प्रतिष्ठित एवं अभिमंत्रित किया गया लहसुनिया रत्न Lahsuniya ratna pahanne ke fayde) को आप किसी भगवान श्री गणेश के मंदिर में ले जाकर उनके चरणों में कुछ देर के लिए छोड़ देंl उसके पश्चात उस रत्न को उठा ले तथा भगवान गणेश से उनकी कृपा प्राप्त करें एवं मंदिर के पुजारी से भी आशीर्वाद प्राप्त करें एवं उन्हें उचित दान दक्षिणा प्रदान करें।
8. केतु ग्रह को शनि ग्रह की तरह ही छाया ग्रह से संबोधित किया जाता है, इसलिए सूर्य उदय से पूर्व का समय केतु ग्रह का माना जाता है, इसलिए सबसे उपयुक्त समय लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna dharan karne ka samay) को धारण करने के लिए मध्य रात्रि के बाद का समय या सूर्य उदय से पूर्व का समय माना गया हैl आप इसे इस समय अपने मनवांछित इच्छा को बोलते हुए धारण करें या जिस भी परेशानी को दूर करने के लिए आप उसे धारण करना चाहते हैं, उसे मन में बोलते हुए लहसुनिया रत्न को धारण करें।
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9. लहसुनिया रत्न (Lahsuniya ratna dharan karne ka muhurt) को मध्यमा उंगली में धारण किया जाता हैl कभी-कभी लोगों के द्वारा इस रत्न को तर्जनी उंगली में भी धारण किया जाता है, दाया बाया हाथ की तर्जनी उंगली में भी इसे धारण किया जा सकता है, क्योंकि केतु को गुरु ग्रह का दास भी माना जाता है lअतः इनसे संबंधित उंगली में भी केतु का रत्न या उपरत्न धारण किया जा सकता है।
10. जिस भी शुभ घड़ी में आपके द्वारा यह रत्न धारण किया गया है, उस दिन भूलकर भी किसी से वाद-विवाद ना करें एवं कुत्तों को खासकर जो दो रंग के या दो से अधिक रंग वाले कुत्ते होते हैं lउन्हें दूध ब्रेड या कोई भी मीठी चीज अवश्य खाने को दें lघर आकर अपने बड़े बुजुर्ग परिवार के लोगों से आशीर्वाद प्राप्त करें इसके साथ ही उन्हें भी कुछ मीठा अवश्य खिलाएं।
11. यदि संभव हो तो किसी जरूरतमंद इंसान को भोजन अवश्य कराएं एवं उनकी सहायता अवश्य करेंl वर्जित चीजों के सेवन से खुद को दूर रखें।
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