दो मुखी रुद्राक्ष की पहचान – Do Mukhi Rudraksha Ki Pahchan

दो मुखी रुद्राक्ष की पहचान – Do Mukhi Rudraksha Ki Pahchan

 

दो मुखी रुद्राक्ष की पहचान – Do Mukhi

 Rudraksha Ki Pahchan

1. दो मुखी रुद्राक्ष (do mukhi rudraksha ki pahchan kaise kare) में स्पष्ट रूप से रेखाएं मौजूद रहती है, जो उन्हें एक छोर से दूसरे छोर तक पूरी अर्ध भाग में विभाजित करती है, तथा जब इस पर किसी भी प्रकार का दबाव डाला जाता है, तब भी यह अलग नहीं होते हैं, क्योंकि इनकी संरचना प्रकृति के द्वारा ऐसे निर्माण किया जाता है, जैसे- ऊपर से तो भले ही यह दो तत्वों के समान दिखाई पड़े किंतु आंतरिक रूप से यह पूरी तरह से संगठित होता है, इसमें किसी भी प्रकार का अलगाव नहीं होता है, दो मुख होते हुए भी इसका आधार एक ही होता है।

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2. रुद्राक्ष (do mukhi rudraksha ki jankari) को जब तांबे के दो सिक्कों के बीच रखा जाता है, तब इसमें चुंबकीय कंपन उत्पन्न होते हुए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैl इसके साथ ही इसकी दिशा परिवर्तन को भी देखा जा सकता है, जो कि हमारे शरीर के विभिन्न चक्रों को स्पंदन के द्वारा पूरी तरह से संतुलन में रखने एवं प्रभावी रूप से कार्य करने में मदद करते हैं।

3. दो मुखी रुद्राक्ष के ऊपर जो भी रेखा रहती है lवह किसी भी तरफ से विकृत अवस्था में नहीं रहती है, वह पूरा एक वृत के समान पूर्ण रहती है, जबकि यदि किसी भी प्रकार से यदि यह रेखा एक छोर से दूसरे छोर में टूटते हुए जुड़ा हुआ है, तो उसका अर्थ है, कि वह एक उपयुक्त रुद्राक्ष नहीं है।

4. दो मुखी रुद्राक्ष (do mukhi rudraksha ki pahchan kya hai) की आकृति एवं उसके पठार प्राकृतिक रूप से निर्मित हैl इसकी जांच भी अवश्य करना चाहिए क्योंकि यदि पठार प्राकृतिक रूप से निर्मित नहीं होंगे, तो उनमें एक समानताएं बहुत अधिक देखने को मिलेगी, जबकि यदि वह कुदरती तौर पर निर्मित है, तब उसके पठार एक दूसरे से कभी पूरी तरह से संभाल नहीं होंगे, उनमें किसी तरह की भिन्नता अवश्य दिखाई पड़ेगी।

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5.दो मुखी रुद्राक्ष (do mukhi rudraksha dharan karne se kya hota hai) धारण करने से पूर्व यह भी जांच लें कि उसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं होनी चाहिएl प्राकृतिक रूप से उसके अंदर आदि से अंत तक केवल एक ही छिद्र मौजूद रहता हैl
यदि एक से अधिक छीद्र मौजूद है, तो उसका अर्थ है कि वह एक नकली रुद्राक्ष है प्राकृतिक रूप से निर्मित रूद्राक्ष में किसी भी प्रकार के भगवान भोलेनाथ से संबंधित कई तरह के आकृतियां नहीं रहती है, यदि आपको रुद्राक्ष के ऊपर नाग ,त्रिशूल और ओम लिखा हुआ प्राप्त हो रहा है, तो उसका अर्थ है कि वह एक नकली रुद्राक्ष है, तथा कृत्रिम रूप से उस पर इस प्रकार की चीजें बनाई गई है, क्योंकि इस प्रकार के रुद्राक्ष को प्राप्त करना बहुत ही दुर्लभ कार्य हैl यह भी संभव है, कि ऐसी चीजें यदि प्राप्त भी होती है, तो शायद ही किसी व्यक्ति विशेष को आसानी से प्राप्त हो जाए lअन्यथा ऐसी चीजों को प्राप्त करने के लिए सौभाग्य से एवं भाग्य से प्रबल होना भी बहुत आवश्यक है lऐसे रुद्राक्ष प्राप्त करना यानी स्वयं भगवान भोलेनाथ का दर्शन करने के समान है।

रुद्राक्ष भगवान भोलेनाथ के आंसुओं के द्वारा उत्पन्न किया गया है lसनातन संस्कृति में रुद्राक्ष का बहुत बड़ा प्रभावशाली महत्व माना जाता है l यह मनका विभिन्न मनको में सबसे शुद्ध एवं सबसे चमत्कारी माना जाता है, भगवान रूद्र के अक्ष होने के कारण इसे रुद्राक्ष शब्द से अलंकृत किया जाता है।

यह एक प्रकार का फल का बीज हैl इनके वृक्षों को इलियोकार्पस ग्रेनिटस वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है, जोकि हिमालय क्षेत्र में उत्तम गुणवत्ता वाले प्राप्त होते हैंl इनकी उत्पत्ति के लिए उत्तम जलवायु होना बहुत आवश्यक होता हैl उपयुक्त मिट्टी एवं स्पष्ट एवं शुद्ध वातावरण इनके वृद्धि का कारण होता हैl यदि उपयुक्त प्रकार का स्पंदन इन्हें प्राप्त नहीं होता है, तो इनकी वृद्धि नहीं हो पाती हैl जहां भी इनके वृक्ष होते हैं, वहां पर एक सकारात्मक सुरक्षा चक्र का निर्माण कर देते हैं,जिससे आसपास का वातावरण पूरी तरह से शुद्ध हो जाता हैl यही कारण है, कि योगी तथा तपस्वी या किसी भी प्रकार के अध्यात्म से जुड़े हुए लोग प्रायः हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं, तथा वहां की भव्य कांति मय संसार में अपने इष्ट से जुड़ने के लिए जाते हैं, तथा जीवन के वास्तविक लक्ष्य को समझने के लिए वहां के लिए प्रस्थान करते हैं।

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भारत में भी इनकी कई प्रजातियां प्राप्त होती है lदक्षिण भारत में अभी भी उपयुक्त संख्या में रुद्राक्ष वृक्ष की प्रजातियां मौजूद है lभारत के पड़ोसी राज्य नेपाल ,इंडोनेशिया, म्यानमार जैसे राज्यों में भी इस अद्वितीय वृक्ष की कई प्रजातियां पाई जाती हैl हमारे देश में भले ही रुद्राक्ष (do mukhi rudraksha ko kaise pahchane) वृक्ष की संख्या कम हो गई हो किंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि केवल भारत में ही तीन सौ से अधिक प्रजातियां रुद्राक्ष वृक्ष के पाए जाते हैं, और इन वृक्षों की खासियत होती है, कि यह सदाबहार वृक्ष की श्रेणी में आते हैं।

जिनकी वृद्धि बहुत जल्द होती है, तथा रुद्राक्ष की परिपक्वता का समय 2 से 3 साल तक लगते हैं, वैसे तो हमारे कई धार्मिक ग्रंथों में यह वर्णित है, कि रुद्राक्ष कि कई मुख होते थेl ऐसा माना जाता है, कि पृथ्वी पर 108 मुख वाले रुद्राक्ष भी पाए जाते थे, किंतु अभी तक केवल 1 से 21 रेखा वाले रुद्राक्ष प्राप्त हो सका है, किंतु यदि हमारे धर्म ग्रंथों में इनके बारे में इस प्रकार का वर्णन दिया गया है, कि इनके 108 मुख भी होते हैं, तो यह भी संभव है, कि भविष्य में कभी न कभी किसी न किसी व्यक्ति विशेष को इस प्रकार का विशिष्ट मनका भी प्राप्त हो जाए।

इस दिव्य मनका को धारण करने से कई प्रकार के रोग बीमारियां ठीक होने लगते हैंl ऐसे लोग जो ह्रदय से संबंधित रोगों से ग्रसित होते हैं, या फेफड़ा या गला या किसी भी प्रकार की शारीरिक बीमारी को किया ठीक करने की क्षमता रखता हैl ऐसे लोग जो मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं हैl मानसिक अवसाद ,मानसिक संताप से ग्रसित है, ऐसे लोगों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है lइसे धारण करने से उन्हें मानसिक शांति की प्राप्ति होती है, इसके साथ ही आप खुद का ज्ञान भी प्रबल होता है।

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इसे धारण करने से अनेक प्रकार के मंत्रों को सिद्ध करने में भी बहुत मदद मिलती है l रिश्तो को सुचारू रूप में लाने के लिए भी इस दिव्य मनका का प्रयोग किया जाता है,इससे रिश्ते में प्रेम प्रगाढ़ता बढ़ती है, तथा आपसी सभा गीता एवं एकीकरण का भाव उत्पन्न होता है l विद्यार्थी वर्ग हो या किसी भी क्षेत्र से संबंधित लोग हैं lउन सभी के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है lआर्थिक स्थिति को मजबूत बनाता है lज्ञान वृद्धि में भी बहुत अधिक सहायक होता है, स्मृति से संबंधित रोगों को भी ठीक करने में सक्षम होता है।

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